हरी ॐ , लग्न में मंगल का आम प्रभाव

हरी ॐ , 

लग्नस्थ मंगल जातक को तीक्ष्ण बुद्धि तथा तुरंत निर्णय लेने में सक्षम बनाता है. ऐसे जातकों में समस्या के तुरंत समाधान की अद्भुद क्षमता होती है.  लग्नस्थ मंगल का जातक सामान्य से अधिक उत्साही, अधीर एवं साहसी होता है. मंगल बल और पराक्रम को बढाने वाला माना जाता है. ऐसे जातक आवेशित होकर कुछ भी कर बैठते हैं.

लग्नस्थ मंगल चकित्सकों के लिए वरदान होता है परन्तु वकीलों के लिए आर्थिक दृष्टिकोण से हानिकारक माना जाता है. लग्न में मंगल जातक को स्पष्टवादी बनाता है जिसके कारण दूसरों को वह कभी कभी आक्रामक जान पड़ता है. लग्न में बैठा मंगल जातक को स्वभाव से क्रोधी परन्तु मिलनसार बनाता है. अपने लक्ष्य के प्रति जातक बहुत जागरूक होता है तथा उसे पाने के लिए कठिन परिश्रम करने से भी नहीं डरता है.

लग्नस्थ मंगल जातक को आत्मविश्वासी एवं महत्वाकांक्षी बनता है. ऐसे जातक प्रतियोगिताओं या प्रतिस्पर्धाओं से नहीं घबराते अपितु उनमे अधिक रूचि रखते हैं. लग्नस्थ मंगल जातक का मन उद्विग्न रखता है. वह कानून या नियमों को तोड़ने में नहीं हिचकिचाता फलस्वरूप चोट या दुर्घटना का भय सदैव बना रहता है.

लग्नस्थ मंगल के जातकों को मांस पेशियों और रक्त सम्बन्धी रोगों से सावधान रहन चाहिए. प्रजनन सम्बन्धी रोग ज्वर , पीढ़ा  तथा जलने कटने की घटनाएं इन जातकों के साथ यदा कदा होती रहती हैं. लग्नस्थ मंगल शिशुयों को दांत निकलते समय कष्ट देता है.

अग्नि तत्व राशी (मेष, सिंह, धनु ) में मंगल जातक को बहुत साहस एवं पराक्रम प्रदान करता है. धार्मिक कर्मकांड में इनकी विशेष रूचि नहीं होती परन्तु ऐसे जातक सत्य एवं न्याय के पक्षधर होते हैं. अग्नितत्व राशि का मंगल जातक को पुलिस या सेना सम्बन्धी कार्यों में सफलता देता है.

भू तत्व राशि (वृषभ, मकर, कन्या ) का मंगल दूषित होने पर जातक को क्रूर , कठोर अविवेकी एवं घमंडी बनता है. परन्तु यदि यही मंगल शुभ ग्रहों के प्रभाव में हो तो जातक मिलनसार एवं सहानुभूति पूर्ण व्यवहार करता है.

वायु तत्व राशि (तुला, कुम्भ, मिथुन) का मंगल यदि दूषित हो तो जातक प्रणय संबंधों में असफल रहता है और अपने पर्यटन प्रेम के कारण एक स्थान से दुसरे स्थान पर भटकता रहता है.

जल तत्व राशि (कर्क, वृश्चिक, मीन) का मंगल जातक को जलीय सेवाओं में कार्यरत करता है.

MANGAL SHANTI KE UPAY/ मंगल शांति के उपाय

  1. मंगलवार को “सुन्दरकाण्ड” एवं “बालकाण्ड” का पाठ करना लाभकारी होता है |
  2. श्री स्कन्द पुराण में वर्णित “मंगल स्त्रोत” का नित्य श्रद्धा पूर्वक पाठ करने से मंगल के अशुभ प्रभावों से मुक्ति मिलती है. 
  3. क़र्ज़ की स्तिथि में “ऋण मोचक मंगल स्तोत्र“ का नित्य पाठ कारगर साबित होता है.
  4. अधिक क़र्ज़ की स्तिथि में “ऋण मोचक मंगल अनुष्ठान” ही अचूक उपाय है. 
  5. “माँ मंगला गौरी“ की आराधना से भी मंगल दोष दूर होता है |
  6. कार्तिकेय जी की पूजा से भी मंगल दोष के दुशप्रभाव में लाभ मिलता है |
  7. भगवान शिव की स्तुति करें।
  8. ज्योतिषीय परामर्श के बाद मूंगे को धारण करें।
  9. तांबासोनागेहूंलाल वस्त्रलाल चंदनलाल फूलकेशर, कस्तूरी , लाल बैलमसूर की दालभूमि आदि का दान।
  10. मंगली कन्यायें गौरी पूजन की नियमित पूजा अर्चना करें.
  11. मंगल दोष द्वारा यदि कन्या के विवाह में विलम्ब होता हो तो कन्या को शयनकाल में सर के नीचे हल्दी की गाठ रखकर सोना चाहिए और नियमित सोलह गुरूवार पीपल के वृक्ष में जल चढ़ाना चाहिए |
  12. मंगलवार के दिन व्रत रखकर हनुमान जी की पूजा करने एवं “हनुमान चालीसा“ का पाठ करने से व हनुमान जी को सिन्दूर एवं चमेली का तेल अर्पित करने से मंगल दोष शांत होता है |
  13. “महामृत्युजय मंत्र“ का जप हर प्रकार की बाधा का नाश करने वाला होता है, महामृत्युजय मंत्र का जप करा कर मंगल ग्रह की शांति करने से भी वैवाहिक व दांपत्य जीवन में मंगल का कुप्रभाव दूर होता है |
  14. यदि कन्या मांगलिक है तो मांगलिक दोष को प्रभावहीन करने के लिए विवाह से ठीक पूर्व कन्या का विवाह शास्त्रीय विधि द्वारा प्राण प्रतिष्ठित श्री विष्णु प्रतिमा से करे, तत्पश्चात विवाह करे |
  15. कठिन परिस्तिथियों में “वैदिक मंगल शांति अनुष्ठान“ ही लाभदायक होता है.

दूषित मंगल के लक्षण और उससे जनित रोग –लक्षण

मंगल के दुष्प्रभाव के कारण जातक को जीवन में अनेक प्रकार की कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है. अशुभ या पीड़ित मंगल के लक्षण :

  • रक्त सम्बंधित रोग
  • मष्तिष्क ज्वर
  • अल्सर
  • कष्टपूर्ण वैवाहिक जीवन
  • संतान से सुख में कमी आजीवन रहती है.
  • मानसिक रूप से कष्ट
  • तनाव पूर्ण जीवन  
  • आत्म विश्वास और साहस में कमी,
  • अधिक उत्तेजना  
  • मंगल के अशुभ प्रभाव वश दुर्घटनाएं आदि भी होती रहती है.

बिना ज्योतिषी के परामर्श प्रयोग करने से लाभ की जगह नुकसानदायक साबित हो सकता हैं ग्रहों की स्थितिनुसार ही उपचार करना श्रेष्यकर है |

हरी ॐ 

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